1 Corinthians (1 कुरिन्थियों) >> Spiritual Gifts Part 1
1 हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्मिक वरदानों के विषय में अज्ञात रहो।
1 Now concerning spiritual gifts, brethren, I would not have you ignorant.
2 तुम जानते हो, कि जब तुम अन्यजाति थे, तो गूंगी मूरतों के पीछे जैसे चलाए जाते थे वैसे चलते थे।
2 Ye know that ye were Gentiles, carried away unto these dumb idols, even as ye were led.
3 इसलिये मैं तुम्हें चितौनी देता हूं कि जो कोई परमेश्वर की आत्मा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु स्त्रापित है; और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है॥
3 Wherefore I give you to understand, that no man speaking by the Spirit of God calleth Jesus accursed: and that no man can say that Jesus is the Lord, but by the Holy Ghost.
4 वरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्मा एक ही है।
4 Now there are diversities of gifts, but the same Spirit.
5 और सेवा भी कई प्रकार की है, परन्तु प्रभु एक ही है।
5 And there are differences of administrations, but the same Lord.
6 और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है।
6 And there are diversities of operations, but it is the same God which worketh all in all.
7 किन्तु सब के लाभ पहुंचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है।
7 But the manifestation of the Spirit is given to every man to profit withal.
8 क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें।
8 For to one is given by the Spirit the word of wisdom; to another the word of knowledge by the same Spirit;
9 और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का वरदान दिया जाता है।
9 To another faith by the same Spirit; to another the gifts of healing by the same Spirit;
10 फिर किसी को सामर्थ के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना।
10 To another the working of miracles; to another prophecy; to another discerning of spirits; to another divers kinds of tongues; to another the interpretation of tongues:
11 परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है॥
11 But all these worketh that one and the selfsame Spirit, dividing to every man severally as he will.
12 क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है।
12 For as the body is one, and hath many members, and all the members of that one body, being many, are one body: so also is Christ.
13 क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया।
13 For by one Spirit are we all baptized into one body, whether we be Jews or Gentiles, whether we be bond or free; and have been all made to drink into one Spirit.
14 इसलिये कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं।
14 For the body is not one member, but many.
15 यदि पांव कहे कि मैं हाथ नहीं, इसलिये देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं?
15 If the foot shall say, Because I am not the hand, I am not of the body; is it therefore not of the body?
16 और यदि कान कहे; कि मैं आंख नहीं, इसलिये देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं?
16 And if the ear shall say, Because I am not the eye, I am not of the body; is it therefore not of the body?
17 यदि सारी देह आंख की होती तो सुनना कहां से होता? यदि सारी देह कान ही होती तो सूंघना कहां होता?
17 If the whole body were an eye, where were the hearing? If the whole were hearing, where were the smelling?
18 परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगो को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक कर के देह में रखा है।
18 But now hath God set the members every one of them in the body, as it hath pleased him.
19 यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती?
19 And if they were all one member, where were the body?
20 परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है।
20 But now are they many members, yet but one body.
21 आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवों से कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।
21 And the eye cannot say unto the hand, I have no need of thee: nor again the head to the feet, I have no need of you.
22 परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं।
22 Nay, much more those members of the body, which seem to be more feeble, are necessary:
23 और देह के जिन अंगो को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्ही को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं।
23 And those members of the body, which we think to be less honourable, upon these we bestow more abundant honour; and our uncomely parts have more abundant comeliness.
24 फिर भी हमारे शोभायमान अंगो को इस का प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो।
24 For our comely parts have no need: but God hath tempered the body together, having given more abundant honour to that part which lacked:
25 ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
25 That there should be no schism in the body; but that the members should have the same care one for another.
26 इसलिये यदि एक अंग दु:ख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दु:ख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं।
26 And whether one member suffer, all the members suffer with it; or one member be honoured, all the members rejoice with it.
27 इसी प्रकार तुम सब मिल कर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो।
27 Now ye are the body of Christ, and members in particular.
28 और परमेश्वर ने कलीसिया में अलग अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ के काम करने वाले, फिर चंगा करने वाले, और उपकार करने वाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बोलने वाले।
28 And God hath set some in the church, first apostles, secondarily prophets, thirdly teachers, after that miracles, then gifts of healings, helps, governments, diversities of tongues.
29 क्या सब प्रेरित हैं? क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं? क्या सब उपदेशक हैं? क्या सब सामर्थ के काम करने वाले हैं?
29 Are all apostles? are all prophets? are all teachers? are all workers of miracles?
30 क्या सब को चंगा करने का वरदान मिला है? क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं?
30 Have all the gifts of healing? do all speak with tongues? do all interpret?
31 क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं॥
31 But covet earnestly the best gifts: and yet shew I unto you a more excellent way.